जानिए किस मुद्दे पर चरणों में आंदोलन एवं Bharat Bandh किया जा रहा है BIN & RPVM द्वारा ?

साथियों 5 चरणों मे आंदोलन के साथ साथ 9 सितंबर को Bharat Bandh किया जा रहा है । यह कार्यक्रम बीते 7 अगस्त 2023 से ही Buddhist International Network ( BIN ) एवं Rashtriya Pichda Varg Morcha ( RPVM ) द्वारा राष्ट्रव्यापी आंदोलन कार्यक्रम शुरू हो चुका है ।

इस आंदोलन के बारे में अगर अप कुछ नहीं जानते हैं तो इस लेख को सम्पूर्ण जरूर पढ़ें । ताकि आपके मन में किसी भी तरहा के सवाल खड़ा न हो ।

5 चरणों में आंदोलन तथा 9 September 2023 को Bharat Bandh

बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क (Buddhist International Network) एवं राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग मोर्चा (Rashtriya Pichda Varg Morcha) द्वारा Waman Meshram के नेतृत्व में देश के 31 राज्यों, 567 जिलों में एक साथ देशव्यापी चरणबद्ध आंदोलन का तारीख ऐलान कर दिया गया है । यह आंदोलन 5 चरणों में किया जाएगा ।

मूलनिवासी बहुजनों के विरासत पर विदेशी ब्राह्मणों द्वारा जबरन कब्जा कराया जा रहा है उसके विरोध में 9 सितंबर 2023 को भारत बंद ।

चरणबद्ध आंदोलन:

प्रथम चरण : 07 अगस्त 2023 को जिलाधिकारी कार्यालय पर भारत के सभी जिलों में ज्ञापन आंदोलन ।

दूसरा चरण : 15 अगस्त 2023 को सभी जिलों में धारणा प्रदर्शन आंदोलन ।

तीसरा चरण : 22 अगस्त 2023  को सभी जिला मुख्यालय पर रैली प्रदर्शन आंदोलन । 

चौथा चरण : 09 सितंबर 2023 को BHARAT BANDH किया जाएगा ।

पांचवा चरण : 24  सितंबर 2023 को बनारस के जिला अधिकारी कार्यालय पर एक लाख लोगों का मोर्चा ।

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आंदोलन के मुद्दे :

1 ) डीएनए के अनुसार ब्राह्मण विदेशी है इसलिए भारत के किसी भी भूभाग विदेशी ब्राह्मणों का कब्जा कैसे जायज हो सकता है ? उताह यूनिवरसिटि के डॉ. माइकल बमशाद के डीएनए रिपोर्ट के आधार पर ब्राह्मण विदेशी सिद्ध हो चुके हैं । उस डीएनए रिपोर्ट का शीर्षक यह था Genetic Evidence on the Origins of the Indian Caste Populations इसके आधार पर ब्राह्मण केवल विदेशी ही सिद्ध नहीं हुए तो ब्राह्मणों ने वर्ण व्यवस्था तथा जातिव्यवस्था क्यों बनाई यह बात भी सिद्ध हुई ।

भारत के मूलनिवासी लोगों को जो 6247 जतियों में बातें गए हैं उनका डीएनए समान मिला और मुस्लिम, बौद्ध, सीख, जैन, लिंगायत इंका डीएनए भी भारतीय मिला । इस डीएनए रिपोर्ट में और एक आश्चर्यजनक जानकारी सामने आई की ब्राह्मण पुरुषों का ब्राह्मण महिलाओं के साथ डीएनए नहीं मिला । 4000 बर्ष पहले केवल मात्र विदेशी ब्राह्मण पुरुष ही भारत में आये थे वो साथ में महिला लेकर नहीं आये थे । इसलिए उन्होने अपनी संतति पैदा करने के लिए यही के महिलाओं का इस्तेमाल किया ।

महिलाओं में Mitochondrial DNA होता है जो कभी नहीं बदलता । ब्राह्मण पुरुष विदेशी है और उनकी मातृभूमि काले समुंदर के पास West Eurasia है । इसके अलावा कई सारे DNA Report प्रसिद्ध हुए जिसमें ब्राह्मण विदेशी है यह बात सप्रमाण सिद्ध हुई । कोलिन बारास ने सान-2019 में ब्राह्मण लोग इतिहास के बेहद जालिम, बेरहम लोग और उनके प्राचीन डीएनए अनुसंधान से यह बात उजागर हुई है बताया है । सन-2019 में रखीगढ़ी डीएनए अनुसंधान से भी ब्राह्मण विदेशी सिद्ध हुए ।

राखीगढ़ी यह सिंधु सभ्यता की शाखा है जो हरियाणा में पाई गई । जिसका कार्यकाल 5000 बर्ष पुराना है और उसके अंदर ढेर सारे कंकाल मिलें उसमें से एक कंकाल का डीएनए प्रपट हुआ जो 4700 साल पुराना है । राखीगढ़ी डीएनए रिपोर्ट के साथ ही एक और वैश्विक डीएनए रिपोर्ट 117 वैज्ञानिकों द्वारा प्रकाशित किया गया था । जिसके शीर्षक दक्षिण और मध्य एशिया की आनुवांशिक संरचना यह था । उस रिपोर्ट ने यह सिद्ध किया की ब्राह्मण 4000 बर्ष पहले भारत आये ।

राखीगढ़ी कंकाल का डीएनए इससे पुराना है इसलिए राखीगढ़ी डीएनए में ब्राह्मणों का डीएनए मिलने का सवाल ही नहीं । ब्राह्मणों के डीएनए ग्रुप का नाम R1 A1 है । और भारत के तमाम मूलनिवासी बहुजनों के डीएनए ग्रुप का नाम L3MN यह है । ब्राह्मणों के भाई-बंधु खास कर West Eurasia में रहते हैं जिन्हें स्टेप पेस्टोरेलिस्ट यामनिया कहते हैं । इसका अर्थ जंगली, असभ्य, अविकसित जमात होता है । जिंका डीएनए भारतीय नहीं है, विदेशी है, वो भारत के किसी भी भूभाग पर नाजायज कब्जा कैसे कर सकते हैं ? यह महत्वपूर्ण सवाल है ।

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2 ) काशी-मथुरा यह बौद्ध स्थल है :

दिनांक 09 जुलाई 2023 को बनारस और 16 जुलाई 2023 को मथुरा में बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क एवं राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग मोर्चा का कार्यक्रम निर्धारित था लेकिन दोनों कार्यक्रमों पर आरएसएस, बीजेपी की सरकार ने रोक लगाई ।

बनारस की जनसभा के लिए प्रशासन द्वारा अनुमति मिली थी और 09 जुलाई 2023 को रात 01:00 am को शांति मैरेज लॉन, आशापुर, सारनाथ, वाराणसी के मालिक को वरुणा जोन कमिश्नरेट पुलिस उपायुक्त के द्वारा पर्मिशन निरस्त का लेटर थमा दिया जाता है, जबकि आयोजक को इसकी कोई भी सूचना नहीं दी जाती है ।

इस तरह से उत्तर प्रदेश की योगी सरकार और केंद्र में बैठी मोदी सरकार जनता के आर्टिकल- 19 संविधान में निहित मौलिक अधिकार पर पाबंदी लगा रहे है । 

आरएसएस-बीजेपी एक तरफा हिन्दू-हिन्दुत्व का प्रचार करके, हिन्दू-मुसलमान का प्रोपोगण्डा करके अल्पसंख विदेशी ब्राह्मणों का कब्जा कर रहे है । काशी-मथुरा का विवाद इसी तरह खड़ा करके मूल बौद्धों की विरासत पर वे नाजायज तरीके से कब्जा करना चाहते हैं ।

ज्ञानवापि मस्जिद के नीचे सम्राट अशोक द्वारा निर्मित आनंदयान विहार है । ब्राह्मणों का और ज्ञान का कोई संबंध नहीं है । जबकि ब्राह्मण लोग तीसरी शताब्दी तक काशी-वाराणसी को अपवित्र शहर मानते थे । अठर्वेद (7.22.14) में ब्राह्मण ऋषि कहता है की यदि किसी व्यक्ति को बुखार होता है तो उसका बुखार काशी, वंग और मगध की तरफ जाए और वे लोग बीमार पड़े । उसी तरह मनुस्मृति में परंपावन क्षेत्र की सूची में काशी-बनारस का जिक्र नहीं मिलता ।

जो ब्राह्मण काशी-वारानशी से इतनी घृणा करते थे ये आज उसपर दावा क्यों कर रहे हैं ? बनारस युद्ध का प्रथम धम्मचकर पवत्तन का केंद्र था और दुनिया में बौद्ध धम्म यही से फैला था । मथुरा में सान-1853 में ही सर मेजर जनरल कनिंघम द्वारा विवादित स्थल के नीचे उत्खनन कार्य किया गया जहां पर उन्हें विहार के डिजाईन, नक्शा, महामाया की प्रतिमा तथा तथागत बुद्ध की प्रतिमा और बौद्ध धम्म के प्रतिक मिले जो अब लाहौर संग्रहालय में संरक्षित है ।

मथुरा में सम्राट अशोक के गुरु उपगुप्त महाथेरी का विहार है तथा भिक्षु आनंद, भिक्षु राहुल इनके भी स्तूप है । सातवीं सदी में आए चीनी यात्री हेनसांग के अनुसार यहाँ असंख्य बौद्ध विहार थे तथा हजारों भिक्षु रहते थे । पुरातात्विक आधार पर काशी-मथुरा यह बौद्धों की है । सम्राट अशोक और तथागत बुद्ध के पूर्व ब्राह्मणो के एक भी मंदिर नहीं थें और एक भी प्रतिमा नहीं थी । तो किस आधार पर बौद्ध स्थलों पर ब्राह्मण दावा कर रहे हैं ।

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3) साकेत बौद्ध स्थल है :

बाबरी मस्जिद एक षडयंत्र के तहत गियारी गई । उसके बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व विभाग को उस जमीन के नीचे क्या है इसकी जांच करने के लिए उत्खनन करने का आदेश दिया । सान-2002-2003 को उस जगह का उत्खनन किया गया । रिपोर्ट में वह स्थान स्थान बौद्धों का है यह मान्य किया गया लेकिन उस रिपोर्ट को अभीतक सार्वजनिक नहीं किया गया ।

सर्वोच्च न्यायालय के जजमेंट में भी यह बात स्वीकारी गई की मुस्लिम पार्टी के वकील ने यह मान्य किया था की उस जमीन के नीचे बौद्ध स्तूप है लेकिन कोर्ट ने उस मुद्दे पर चर्चा नहीं होने दी । इससे सिद्ध होता है की न्यायपालिका ने निष्पक्ष और न्याय, कानून के मापदंड के आधार पर फैसला नहीं दिया बल्कि श्रद्धा और आस्था के आधार पर फैसला दिया । वह फैसला जायज और कानूनी कैसे माना जा सकता है ?

जबकि पहले से ही बौद्ध पार्टी की केस चल रही थी उसकी आगे कोई सुनवाई ही नहीं हुई । लॉकडाउन का सहारा लेकर सम्राट अशोक के धरोहर पर इस प्रकार से आरएसएस, बीजेपोई के ब्राह्मणों ने अतिक्रमण करके कब्जा किया ।

4) महवोधी महाविहार पर से विदेशी ब्राह्मणों का कब्जा हटाया जाए :-

तथाकथित आजादी को बौद्ध राष्ट्रों का समर्थन हासिल करने के लिए मोहनदास करमचंद गांधी ने आश्वासन दिया था की भारत पर ब्रिटीशों का राज है और भारत को आजाद कराने के लिए बौद्ध राष्ट्र अगर समर्थन देते हैं तो बौद्धगया को बौद्धों के हवाले सौंप दिया जाएगा ।

नाटक के तौर पर डा. राजेंद्र प्रसाद की अधक्षता में एक कमेटी तक गठित की गई मगर भारत आजाद होते ही बौद्धगया पर नजयाग तरीके से ब्राह्मणों ने कब्जा किया और नेहरू के द्वारा महाबोधि टेम्पल एक्ट-1949 बनाकर 5 सदस्य ब्राह्मण रहेंगे और बाकी 4 सदस्य बौद्ध रहेंगे, ऐसा प्रावधान कराके उस पर ब्राह्मणों का कब्जा कराया गया । यह एक्ट रद्द होना चाहिए और बौद्धगया विश्व धरोहर होने के कारण उसपर केवल बौद्धों का ही नियंत्रण होना चाहिए, महंत ब्राह्मणों का कब्जा वहाँ से हटाना चाहिए ।

उस महंत ब्राह्मण के निवास में बुद्ध की सैकड़ो मूर्तियाँ और अभिलेख पड़े हिए हैं उसे तुरंत पुरातत्व विभाग के बौद्धगया संग्रहालय में शिफ्ट कर संरक्षित करना चाहिए । उस प्राचीन धरोहर को संरक्षित न कर भारतीय पुरातत्व विभाग आतंकवादी ब्राह्मणों का साथ दे रही है ।

5) सोमनाथ मंदिर बौद्ध विहार है :

कुछ साल पहले मीडिया में खबर छपकर आई की सोमनाथ मंदिर के नीचे आधुनिक तकनीक जीपीआर (ग्राउन्ड पेनेट्रेटिंग राडार) तकनीक से खोज की गई तो वहाँ तीन मंज़िला बौद्ध विहार मिला । सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट के द्वारा पूरातत्वज्ञ के एक टीम को ये कार्य सौंपा गया । वह कार्य इंडियायन इंस्टीट्यूट टेक्नालजी, गांधीनगर द्वारा किया गया । आश्चर्य की बात यह है की सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष नरेंद्र मोदी है और देश के प्रधानमंत्री भी नरेंद्र मोदी है । प्रधानमंत्री के हैसियत से नरेंद्र मोदी की यह नैतिक निम्मेदारी बनती है की सोमनाथ मंदिर का उत्खनन कराकर वह बौद्ध के हवाले कराये ।

नरेंद्र मोदी बीच-बीच में तथागत बुद्ध की स्तुति करते हैं लेकिन व्यवहार में आरएसएस के मोहन भागवत के इशारे पर बौद्ध स्थलों पर ब्राह्मणों का कब्जा कराने के लिए मदद करते हैं । और इसके लिए लोकतांत्रिक संस्थाओ का गलत इस्तेमाल करते हैं । उस जीपीआर तकनीक रिपोर्ट में यह बात दर्ज है की सोमनाथ मंदिर के नीचे तीन मंज़िला बौद्ध विहार है, उसके नीचे बहुमूल्य धातु है, उसके नीचे बड़े-बड़े बौद्ध स्तूप संरचना, बौद्ध प्रतीक मौजूद है । प्रधानमंत्री की यह ज़िम्मेदारी है की वह धरोहर तुरंत बौद्धों के हवाले करें ।

जिस तरह बौद्ध संरचना पर सोमनाथ मंदिर खड़ा किया गया उसी तरह भारत मेन प्रसिद्ध मंदिरों के नीचे बौद्ध संरचना एवं स्तूप मौजूद हैं । सम्राट अशोक द्वारा निर्मित 84000 विहार एवं स्तूप कहाँ गए ? उन सभी बौद्ध विहार और स्तूपों को मुक्त काना होगा ।

6) दिल्ली के पुराने किले में बौद्ध अवशेष ही मिलें हैं :

हल ही के दिनों में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा दिल्ली स्थित पुराने किले का उत्खनन कार्य किया गया । उसके अंदर प्राचीन मौर्य कालीन अवशेष मिलें । उसमे बुद्ध की माँ महामाया की मूर्ति भी मिली । इसलिए दिल्ली के संस्थापक मौर्य ही है । इसका यह पुरातात्विक प्रमाण है लेकिन एएएसआई द्वारा उन प्राचीन बौद्ध अवशेषों को महाभारत कालीन अवशेष बताकर ब्राह्मणवाद को मजबूत करने का काम किया जा रहा है ।

गजेटियर ऑफ दिल्ली डिस्ट्रिक्ट 1883-84 में पृष्ठ संख्या 202 पर स्पष्ट तौर पर लिखा है की मथरा रोड के आगे जो किला या जिसे इन्द्रप्रस्थ कहते है वह मौर्य कालीन प्राचीन स्थल है । पुरातत्व इभाग के लोग जिसे मौर्य कालीन स्थल कह रहे थे उस जगह को ब्राह्मण लोग खासकर आरएसएस, बीजेपी के ब्राह्मण इन्द्रप्रस्थ या महाभारत कालीन अवशेष अब बता हहे हैं । रामायण और महाभारत यह सम्राट बृहदत्त मौर्य की हत्या करने के बाद लिखे गए । ब्रिटिश भारत में आने तक उसमें समय-समय पर संस्कार कराया ।

सम्राट अशोक और बुद्ध को दबाने के लिए आरएसएस, बीजेपी के लोग रामायण, महाभारत को अति प्राचीन दिखने का प्रयास कर टहे अहीन । और इस षडयंत्र को मान्यता मिले इसके लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं ।

साथियों, Buddhist International Network and Rashtriya Pichda Varg Morcha द्वारा हो रहे BHARAT BANDH आंदोलन के बारे में आपका क्या कहना है कमेंट करके जरूर बताएं । क्या आप इस आंदोलन को बुद्धि, पैसा, हुनर, समय और श्रम लगाकर सफल बने में सहयोग करेंगे ?

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